दोस्तों आज इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि निर्वात् परिपथ वियोजक के बारे में बहुत ही अच्छे तरीके से इन सब के बारे में जानकारी देने वाला हूं| तो चलिए शुरू करते हैं |
निर्वात् परिपथ वियोजक
इसमें निर्वात् आर्क बुझाने का माध्यम होता है। इसकी प्रतिरोधी क्षमता सबसे अधिक होती है। यह सबसे अच्छा आर्क बुझाने का माध्यम है।
यदि हम यह मानते हैं की निर्वात् में परिपथ के सम्पर्क खुले रहते हैं तो व्यवधान पहले शून्य धारा पर आ जाता है। जब निर्वात् में सम्पर्क खुलते हैं तब धातु के सिरों पर आर्क उत्पन्न होता है।
एक उच्च स्पॉट (spot) उच्च धौरा घनत्य (density) के कारण त उत्पन्न होता है व सम्पर्क अलग होते हैं। आयन तथा इलेक्ट्रॉन वियोजक की सतह पर उत्पन्न होते हैं और यह आर्क रिस्ट्राइकिंग (restriking) को ) रोकता है। यह एक या एक से अधिक निर्वात् व्यवधान भाग प्रति पोल रखता है |
बनावट
इसमें निर्वात् चैम्बर होता है जो की चल अचल चैम्बर तथा आर्क शील्ड (shield) से जुड़ा होता है। चल चैम्बर स्टील के बेलोस (bellows) से जुड़ा होता है जो नियन्त्रण इकाई द्वारा नियन्त्रित किया जाता है। सम्पकों को बड़ी डिस्क (disc) आकृति से बनाया जाता है। डिस्क को सममित रूप से इस प्रकार बनाया जाता है जिससे दो सम्पर्क एक दूसरे से अलग कार्य कर सके।
इस कारण आर्क सरलता से घूम सकता है। बाहरी आवरण कांच का होता है। यह कांच रूपी आवरण निर्वात् पूरी तरह से बनाए रखता है।
लीकेज (leakage) को बचाने के लिए पूरा चैम्बर सील (seal) किया का जाता है।
धातु वाष्प (vapour) जो कि सम्पर्क सिरों से निकलती है आर्किंग (arcing) के समय इन सिरों पर जम जाती है और प्रतिरोधों से अलग रहती 61 है।
कार्यप्रणाली (Working)
असामान्य परिस्थितियों में आर्क उत्पन्न होती है, यह मेटल आयन के आयनीकरण के कारण सम्पकों में उत्पन्न होती है। निर्वात् परिपथ वियोजक की कार्यप्रणाली अन्य से अलग होती है। सम्पकों के अलग होने पर वाष्प सम्पर्क अन्तरालों में भर जाती है। यह वाष्प धारा पर निर्भर करती है। धारा में व्यवधान निर्वात् में कम होता है क्योंकि आर्क को निकालने के लिए कई रास्ते होते हैं। यह डिफ्यूज अवस्था (diffuse state) कहलाती है।
धारा के उच्च मान के समय आर्क एक छोटे भाग में इकट्ठा हो जाता है तथा सम्पर्क सिरों पर तेजी से वाष्पीकरण होता है। आर्क व्यवधान तभी सम्भव है जब यह डिफ्यूज (diffuse) स्टेट में हो।
आर्क में पथ (path) को लगातार घुमाते रहते हैं जिससे एक बिन्दु पर तापमान ज्यादा ना बढ़े। अन्तिम आर्क व्यवधान के बाद डाइइलेक्ट्रिक (dielectric) क्षमता बढ़ती है। ये, केर्पेसिटर स्विचिंग (capacitor switching) में उपयुक्त है तथा आर्क की रिस्ट्राइकिंग (restriking) भी नहीं होती है।
डाईकॉपर मैग्नीशियम (Cu₂Mg), डाईसीजियम कॉपर (CuCe₂) तथा कॉपर बिस्मथ (CuBi) मेटल व निर्वात् परिपथ वियोजक में उपयुक्त रहते हैं।
लाभ (Advantages)
- ये बिना आवाज के कार्य करते हैं।
- इनमें ब्लास्ट की आवश्यकता नहीं होती है।
- इनमें डाइइलेक्ट्रिक (dielectric) क्षमता बढ़ने की सम्भावना ज्यादा होती है।
- इनकी उम्र लम्बी होती है।
हानियां (Disadvantages)
कांच के आवरण के कारण इनका रख-रखाव सावधानीपूर्वक करना पड़ता है।
अनुप्रयोग (Applications)
ये बाह्य द्वारीय अनुप्रयोगों (Outdoor applications) में 22 kV से 66kV तक वोल्टता के काम में आते हैं। 36 kV वोल्टता तक एकल व्यवधान निर्वात् परिपथ वियोजक (single interruption vacuum circuit breaker) बहुत अधिक उपयोग में लिए जाते हैं। ये मेटल आवरणित स्विच गियर (Metal enclosed switch gears) तथा आर्क फरनेस स्थापना (Arc furnace installation) तथा सहायक स्विच गियर को जनित्र स्टेशन तथा अन्य औद्योगिक अनुप्रयोगों में काम में लिए जाते हैं।
आज आपने क्या सीखा :-
अब आप जान गए होंगे कि निर्वात् परिपथ वियोजक इन सभी सवालों का जवाब आपको अच्छी तरह से मिल गया होगा|
उम्मीद करता हूं कि मेरे द्वारा दी गई जानकारी आपको पसंद आई होगी अगर आपके मन में कोई भी सवाल/सुझाव है तो मुझे कमेंट करके नीचे बता सकते हो मैं आपके कमेंट का जरूर जवाब दूंगा| अगर आपको यह पोस्ट पसंद आई है तो अपने दोस्तों रिश्तेदारों के साथ में शेयर भी कर सकते हो