दोस्तों आज इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि परिपथ वियोजक की मूल संरचना एवं आर्क सिद्धान्त के बारे में बहुत ही अच्छे तरीके से इन सब के बारे में जानकारी देने वाला हूं| तो चलिए शुरू करते हैं |
परिपथ वियोजक की मूल संरचना एवं आर्क सिद्धान्त
परिपथ वियोजक का मुख्य कार्य प्रदोष आने की स्थिति में प्रदोषी भाग को मुख्य परिपथ से अलग कर देना है। एक रक्षण (protective) रिले (relay) असामान्य स्थितियों का पता (identify) करता है तथा परिपथ वियोजक को एक पात (tripping) संकेत भेजता है। पात संकेत मिलने के बाद परिपथ वियोजक प्रदोषी भाग को मुख्य परिपथ से अलग कर देता है।
जब लाइन या एक रक्षण परिपथ में कोई प्रदोष आता है तो CT या VT से जो रिले जुड़ा होता है वह प्रदोष का पता लगाता है तथा पात परिपथ से सम्पर्क हटा देता है।
जैसे ही परिपथ वियोजक की पात कुण्डली काम करने लगती है परिपथ वियोजक का प्रचलन भाग कार्य करने लगता है तथा वह परिपथ खोलने की क्रिया से प्रदोषी भाग को अलग करने की क्रिया का कार्य सम्पन्न करता है।
एक परिपथ वियोजक के दो भाग होते हैं-एक चल सम्पर्क तथा दूसरा अचल सम्पर्क ।
ये सम्पर्क एक बन्द विद्युतरोधी (insulating) माध्यम का तरल पदार्थ (fluid) से घिरे बॉक्स में होता है। जब आर्क उत्पन्न होती है तो यह तरल पदार्थ उसे ठण्डा करता है। सामान्य परिस्थितियों में सम्पर्क बना रहता है। जब परिपथ वियोजक को प्रदोषी भाग को अलग करना होता है तब प्रदोषी परिपथ का चल सम्पर्क घूमता है तथा परिपथ को अवरोधित (interrupted) करता है। जब सम्पर्क टूटता है तब परिपथों के बीच में आर्क (arc) बनता है तथा धारा एक सम्पर्क से दूसरे सम्पर्क के बीच में लगातार प्रवाहित होती है
जब परिपथ वियोजक खुलते हैं तो उनके सम्पकों के मध्य आर्क पैदा होती है तथा सम्पर्कों के मध्य अन्तराल के बीच हजारों एम्पियर की धारा बहती है जिससे ऊष्मा बहुत ज्यादा उत्पन्न होती है। इस ऊष्मा के कारण अन्तराल के मध्य का तरल पदार्थ आयनीकृत (ionised) हो जाता है तथा सम्पर्कों के एक्रॉस वोल्टतापात का मान उनके मध्य के प्रतिरोध के कम होने के कारण गिर जाता है तथा आर्क पुष्ट होता जाता है।
परिपथ वियोजक में आर्क के विलोपन की क्रिया
आर्क धारा को इन्द्रप्ट कर आग बुझाने के लिए दो तरीके प्रयुक्त होते हैं-
- उच्च प्रतिरोध इन्ट्रप्शन (High resistance interruption)
- न्यून प्रतिरोध या शून्य धारा इन्ट्रप्शन (Low resistance or zero current interruption)
उच्च प्रतिरोध इन्ट्रप्शन
इस विधि में आर्क को नियंत्रित करने के लिए इसका प्रभावी प्रतिरोध समय के साथ इस प्रकार बढ़ाते हैं कि आर्क धारा का मान वियोजक को मैन्टेन रखने हेतु उपयुक्त रहे। जिससे आर्क में उपयुक्त ऊर्जा अधिक होती है जो उच्च प्रतिरोध इन्ट्रप्शन के न्यून तथा मध्यम शक्ति AC स्विच तथा वियोजकों में प्रयुक्त होती है। इस प्रतिरोध को निम्न प्रकार बढ़ाया जा सकता है-
(i) आर्क की लम्बाई बढ़ाकर।
(ii) आर्क की कूलिंग-आयनीकरण को सतत् रखने के लिए उपयुक्त विभव तापमान में वृद्धि के साथ कम होता है। जिससे कूलिंग द्वारा प्रतिरोध बढ़ाते हैं।
(iii) आर्क को फैलाकर।
(iv) आर्क के अनुप्रस्थ काट को कम करके।
(v) आयनीकृत कणों की सान्द्रता कम करके।
इस विधि का प्रयोग DC सर्किट ब्रेकर तथा न्यून व मध्यम शक्ति प्रकार के वियोजकों में करते हैं।
शून्य धारा इन्ट्रप्शन
यह विधि केवल AC परिपथ वियोजकों में प्रयुक्त होती है। इस विधि में आर्क का प्रतिरोध न्यून रखा जाता है जब तक कि धारा शून्य नहीं हो जाती और जब धारा शून्य मान को प्राप्त करती है तो ऐसी व्यवस्था होती है कि शीघ्र ही आर्क का इन्द्रप्शन हो जाता है और उच्च पुनः आघात होने के बावजूद भी पुनः प्रारम्भ न हो सके।
इस विधि का प्रयोग सभी उच्च शक्ति AC परिपथ वियोजकों में करते हैं। इसमें परावैद्युत स्ट्रेन्थ को निम्न प्रकार बढ़ाया जाता है-
(i)गैप की लम्बाई बढ़ाकर
(ii) कूलिंग द्वारा
(iii) झोंका प्रभाव (Blast effect) से
आज आपने क्या सीखा :-
अब आप जान गए होंगे कि परिपथ वियोजक की मूल संरचना एवं आर्क सिद्धान्त इन सभी सवालों का जवाब आपको अच्छी तरह से मिल गया होगा|
उम्मीद करता हूं कि मेरे द्वारा दी गई जानकारी आपको पसंद आई होगी अगर आपके मन में कोई भी सवाल/सुझाव है तो मुझे कमेंट करके नीचे बता सकते हो मैं आपके कमेंट का जरूर जवाब दूंगा| अगर आपको यह पोस्ट पसंद आई है तो अपने दोस्तों रिश्तेदारों के साथ में शेयर भी कर सकते हो