दोस्तों आज इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि विद्युत ट्रेन में शक्ति प्रदाय के बारे में बहुत ही अच्छे तरीके से इन सब के बारे में जानकारी देने वाला हूं| तो चलिए शुरू करते हैं |
विद्युत ट्रेन में शक्ति प्रदाय की दो विधियां होती हैं। इन विधियों के द्वारा लोकोमोटिव के विभिन्न उपकरणों को सप्लाई दी जाती है। विद्युत ट्रेन में इस सप्लाई के फलस्वरूप मोटरों में बलाघूर्ण उत्पन्न होता है और ट्रेन का प्रचालन होता है।
शक्ति प्रदाय की विधियां निम्नलिखित हैं-
- चालक पटरी प्रणाली (Conductor Rail System)
- शिरोपरि चालक प्रणाली (Overhead Conductor System)
चालक पटरी प्रणाली (Conduction Rail System)
रेलवे में सप्लाई की इस विधि में 600 VDC वोल्टता प्रचालित लाइन में प्रयुक्त होती है। इसमें दिष्ट धारा को विद्युत मोटर तक एक रेल चालक या दो रेल चालकों के द्वारा पहुंचाया जाता है। एक चालक वाली प्रणाली में रेलपथ को वापसी धारा पथ के लिए प्रयोग किया जाता है। चालक पटरी प्रणाली में चालक के रूप में इस्पात का प्रयोग किया जाता है। इसमें उच्च चालकता के लिए इस्पात में कार्बन और मैंगनीज की मात्रा को कम रखा जाता है।
इस्पात की संगठन रचना (Composition) में लोहा 99.63%, कार्बन 0.05% मैंगनीज 0.2%, फॉस्फोरस 0.05%, सिलीकॉन 0.02% तथा सल्फर 0.05% होना चाहिए। इसमें प्रयुक्त इस्पात का प्रतिरोध, ताम्र से 6.5 गुना अधिक होता है। चालक पटरी प्रणाली को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है-
शीर्ष सम्पर्क चालक रेल
इस प्रकार के चालक रेल में शू-संग्राहक (Shoe Collector), रेल चालक की शीर्ष सतह (Top Surface) पर सम्पर्क करके धारा एकत्रित करता है। शीर्ष सम्पर्क चालक रेल को चित्र 1 के द्वारा प्रदर्शित किया गया है। इस प्रणाली का प्रयोग 750V तक किया जाता है।
तह सम्पर्क चालक रेल
इस प्रकार के चालक रेल में शू-संग्राहक, रेल चालक के तल से सम्पर्क करके धारा प्राप्त करता है। चित्र 2 के द्वारा तह सम्पर्क चालक रेल को प्रदर्शित किया गया है।
पार्श्व सम्पर्क चालक रेल
इस प्रकार के चालक रेल में शू-संग्राहक, रेल चालक के पार्श्व भाग से सम्पर्क करके धारा प्राप्त करता है। इस प्रणाली का उपयोग 1200 V तक की विद्युत संकर्षण प्रणाली में किया जाता है। चित्र 3 के द्वारा पार्श्व सम्पर्क चालक रेल को प्रदर्शित किया गया है।
उपरोक्त चालक रेलों के द्वारा धारा संग्रह करने के लिए विशेष आकार की संरचना का निर्माण किया जाता है। इस संरचना का आकार 20 cm × 7.6 cm होता है तथा इसे इस्पात के द्वारा निर्मित किया जाता है। इस संरचना को चित्र 4 के द्वारा प्रदर्शित किया गया है।
इसमें शीर्ष सम्पर्क चालक रेल में सम्पर्क दबाब गुरूत्वाकर्षण बल के द्वारा प्राप्त किया जाता है तथा पार्श्व एवं तह सम्पर्क प्रकार के चालक रेलों में स्प्रिंग के द्वारा सम्पर्क दबाव (Contact pressure) प्राप्त किया जाता है। चालक रेल की स्थिति को सामान्यतः दो प्रकारों में विभाजित किया जाता है-
ट्रैक रेलों के मध्य
चालक रेल को ट्रैक रेलों के मध्य चित्र 5 के अनुसार लगाया जाता है। इसमें चालक रेल को सामान्यतः ट्रैक रेलों से ऊपर रखा जाता है। इसकी ऊंचाई में ट्रैक रेल की तुलना में सामान्यतः 3.81 cm का अन्तर रखा जाता है।
ट्रैक रेलों के बाहर
इस विधि में चालक रेल को ट्रैक रेलों के बाहर रखा जाता है। रेल चालक एवं निकटतम रेल ट्रैक के बीच दूरी 41 cm तक होती है। रेल चालक की ऊंचाई, रेल ट्रैक की तुलना में 7.62 cm अधिक होती है। चालक रेल व ट्रैक रेल को चित्र 6 के द्वारा प्रदर्शित किया गया है।
शिरोपरि चालक प्रणाली
विद्युत शक्ति प्रदान करने की यह विधि 1500 V या इससे अधिक विद्युत वोल्टता वाली प्रत्यावर्ती धारा एवं दिष्ट धारा दोनों प्रकारों की संकर्षण प्रणालियों में प्रयोग की जाती है। शिरोपरि चालक प्रणाली भारी रेलगाड़ियों के लिए प्रयोग की जाती है। संकर्षण प्रणाली में शिरोपरि लाइन से सप्लाई देने के फलस्वरूप वापसी धारा के लिए पटरी पथ का प्रयोग किया जाता है। शिरोपरि चालक से विद्युत धारा, सरकन सम्पर्क संग्राहक (Sliding contact collector) के द्वारा प्राप्त की जाती है। अतः शिरोपरि तार के साथ सरकन सम्पर्क संग्राहक का सम्पर्क पूरी तरह से बनाने के लिए यह आवश्यक है कि शिरोपरि चालक की ऊंचाई भूमि के प्रत्येक बिन्दु से समान होनी चाहिए।
इसमें मेसेन्जर तारों (Messenger wires) का प्रयोग किया जाता है तथा खम्भों के बीच की दूरी भी कम रखी जाती है। इस विधि में रनिंग रेल वापसी चालक का कार्य करती है। इसका प्रयोग मुख्य रेल सेवा के लिए किया जाता है। AC एवं DC दोनों प्रकार की सेवाओं के लिए मेसेन्जर तारों का प्रयोग किया जा सकता है। शिरोपरि लाइन या शिरोपरि तार एक केबल की भांति प्रयोग किया जाता है, जिसके द्वारा विद्युत ऊर्जा को विद्युत लोकोमोटिव तक पहुंचाया जाता है। यह शिरोपरि लाइन निम्नलिखित प्रकार की होती है-
(i) शिरोपरि कैटेनरी (Overhead Catenary)
(ii) शिरोपरि सम्पर्क प्रणाली (Overhead Contact System)
(iii) शिरोपरि उपकरण (Overhead Equipment, OHE)
(iv) शिरोपरि लाइन (Overhead Lines, OHL)
(v) शिरोपरि वायरिंग (Overhead Wiring)
(vi) संकर्षण वायर (Traction Wire)
उपरोक्त दिये गये प्रकारों में ठोस ताम्र चालकों का प्रयोग किया जाता है। इसके कारण चालकता का मान अधिक हो जाता है। संकर्षण चालकों में अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल माप के अनुसार निश्चित किया जाता है। शिरोपरि लाइनों में मजबूती प्रदान करने के लिए 0.04% टिन की मात्रा को मिलाया जाता है। यह आर्क प्रतिरोधी होता है। शिरोपरि चालक के रूप में प्रयोग होने वाली शिरोपरि कैटेनरी प्रणाली में चालकता एवं सपोर्ट दोनों की आवश्यकता होती है, अतः इसके लिए मल्टीग्रेड वायर का प्रयोग किया जाता है। शिरोपरि प्रणाली में अधिकतर ताम्र या एल्युमिनियम चालक का प्रयोग किया जाता है। चालकों में स्टील को गैल्वेनाइज़ करके प्रयोग किया जाता है।
आज आपने क्या सीखा :-
अब आप जान गए होंगे कि विद्युत ट्रेन में शक्ति प्रदाय इन सभी सवालों का जवाब आपको अच्छी तरह से मिल गया होगा|
उम्मीद करता हूं कि मेरे द्वारा दी गई जानकारी आपको पसंद आई होगी अगर आपके मन में कोई भी सवाल/सुझाव है तो मुझे कमेंट करके नीचे बता सकते हो मैं आपके कमेंट का जरूर जवाब दूंगा| अगर आपको यह पोस्ट पसंद आई है तो अपने दोस्तों रिश्तेदारों के साथ में शेयर भी कर सकते हो